Bilva Patra/Bilwa Leaves/ Bel /Beal Stotram Introduction:
The following is Bilva Ashtottara Shatanama Stotram which praises Lord Shiva in beautiful words. It is recited during the worship of Shiva. The specialty of this hymn is that it uses words that are relatively simple in nature but at the same time have a really soothing effect on the ears when recited. This hymn extols Him as Sarveshwara, Lord of everything, and sadashanta, ever-peaceful.
Needless to say, it is most aptly suited for Manasa puja, mental worship. Bilva leaves are dearest to the Lord, and so are especially used in shiva puja. Shrishaila or Shrigiri is one of the holiest shrines of Lord Shiva, located in South India. Bilva trees are widely found on the mountains of this shrine. Hence this shrine is known as shrishailan (shri here being referred to the bilva trees). Adi Shankara is supposed to have composed the immortal hymns Sivananda Lahari and Soundarya Lahari, while he was living on these holy mountains. Hence shrishailan is mentioned in both these hymns. “Shri Giri Mallikarjuna Mahalingam Shivalingitam ” in shivananda lahari (50th poem).
When reciting this wonderful hymn one does not really need these sacred leaves to worship them. But one can surely imagine that he is sitting in the sanctum-sanctorum of shri giri and that he is worshipping that mahalingan (shiva) which is in union with Shiva (shiva + Alingitam = shivalingitam). That very thought is enough to transport one into that infinite bliss. He is blessed who meditates on this undivided aspect of Shiva.
Bilva Ashtottara Shatanamavali in Marathi:
॥ बिल्वाष्टोत्तर शतनामावलि, बिल्व १०८ णामावलि ॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम.ह .
त्रिजन्म पापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 1 ॥
त्रिशाखैः बिल्व पत्रैश्च अश्छिद्रैः कोमलैः शुभैः .
तव पूजां करिष्यामि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 2 ॥
सर्वत्रैलोक्य कर्तारं सर्वत्रैलोक्य पालनम.ह .
सर्वत्रैलोक्य हर्तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 3 ॥
नागाधिराजवलयं नागहारेणभूषितम.ह .
नागकुन्डलसंयुक्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 4 ॥
अक्शमालाधरं रुद्रं पार्वती प्रियवल्लभम.ह .
चन्द्रशेखरमीशानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 5 ॥
त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणम.ह.
विभूत्यभ्यर्चितं दीवं एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 6 ॥
त्रिशूलधारिणं दीवं नागाभरणसुन्दरम.ह .
चन्द्रशेखरमीशानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 7 ॥
गङ्गाधराम्बिकानाथं फणिकुण्डलमण्डितम.ह .
कालकालं गिरीशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 8 ॥
शुद्धस्फटिक संकाशं शितिकंठं कृपानिधिम.ह .
सर्वेश्वरं सदाशान्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 9 ॥
सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम.ह .
वागीश्वरं चिदाकाशं एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 10 ॥
शिपिविष्टं सहस्राशं कैलासाचलवासिनम.ह .
हिरण्यबाहुं सेनान्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 11 ॥
अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम.ह .
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 12 ॥
हरिकेशं सनन्दीशम उच्च्हैर्घोषं सनातनम.ह .
अघोररूपकं कुंभम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 13 ॥
पूर्वजावरजं याम्यं सूश्म तस्करनायकम.ह .
नीलकंठं जघंन्यंच एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 14 ॥
सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम
महासेनं महावीरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 15 ॥
कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारधम.ह .
तौर्यातौर्यं च देव्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 16 ॥
दशकर्णं ललाटाशं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम.ह .
अशेषपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 17 ॥
नीलकण्ठं जगद्वंद्यं दीननाथं महेश्वरम.ह .
महापापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 18 ॥
चूडामणीकृतविभुं वलयीकृतवासुकिम.ह .
कैलासवासिनं भीमम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 19 ॥
कर्पूरकुंदधवलं नरकार्णवतारकम.ह .
करुणामृतसिंधुं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 20 ॥
महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिप कङ्कणम.ह .
महापापहरं देवम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 21 ॥
भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम.ह .
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठम एक बिल्वं शिवार्पणम ॥ 22 ॥
फालेशणं विरूपाशं श्रीकंठं भक्तवत्सलम.ह .
नीललोहितखट्वाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 23 ॥
कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम.ह .
वृषाङ्कं वृषभारूढम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 24 ॥
सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम.ह .
मृत्युञ्जयं लोकनाथम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 25 ॥
दारिद्र्यदुःखहरणं रविचन्द्रानलेशणम.ह .
मृगपाणिं चन्द्रमौळिम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 26 ॥
सर्वलोकभयाकारं सर्वलोकैकसाशिणम.ह .
निर्मलं निर्गुणाकारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 27 ॥
सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम.ह .
सर्वतत्त्वस्वरूपं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 28 ॥
सर्वलोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदम.ह .
सर्वलोकैक नेत्रं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 29 ॥
मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम.ह .
कमलाप्रिय पूज्यंं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 30 ॥
तेजोमयं महाभीमम उमेशं भस्मलेपनम.ह .
भवरोगविनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 31 ॥
स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदम.ह .
नगराजसुताकांतम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 32 ॥
मंजीरपादयुगलं शुभलशणलशितम.ह .
फणिराज विराजं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 33 ॥
निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम.ह .
तेजोरूपं महारौद्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 34 ॥
सर्वलोकैक पितरं सर्वलोकैक मातरम.ह .
सर्वलोकैक नाथं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 35 ॥
चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम.ह .
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 36 ॥
रत्नकञ्चुकरत्नेशं रत्नकुण्डल मण्डितम.ह .
नवरत्न किरीटं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 37 ॥
दिव्यरत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठाभरणभूषितम.ह .
नानारत्नमणिमयम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 38 ॥
रत्नाङ्गुलीय विलसत्करशाखानखप्रभम.ह .
भक्तमानस गेहं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 39 ॥
वामाङ्गभाग विलसदम्बिका वीशणप्रियम.ह .
पुण्डरीकनिभाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 40 ॥
सम्पूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणम.ह .
सौभाग्यदं हितकरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 41 ॥
नानाशास्त्रगुणोपेतं स्फुरन्मंगल विग्रहम.ह .
विद्याविभेदरहितम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 42 ॥
अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम.ह .
धर्माधर्म प्रवृत्तं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 43 ॥
गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहम.ह .
कल्पान्तभैरवं शुभ्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 44 ॥
सुखदं सुखनाशं च दुःखदं दुःखनाशनम.ह .
दुःखावतारं भद्रं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 45 ॥
सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्म फलप्रदम.ह .
अतींद्रियं महामायम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 46 ॥
सर्वपशिमृगाकारं सर्वपशिमृगाधिपम.ह .
सर्वपशिमृगाधारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 47 ॥
जीवाध्यशं जीववंद्यं जीवजीवनरशकम.ह .
जीवकृज्जीवहरणम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 48 ॥
विश्वात्मानं विश्ववंद्यं वज्रात्मावज्रहस्तकम.ह .
वज्रेशं वज्रभूषं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 49 ॥
गणाधिपं गणाध्यशं प्रलयानलनाशकम.ह .
जितेन्द्रियं वीरभद्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 50 ॥
त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम.ह .
दिगम्बरं क्शोभनाशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 51 ॥
कुन्देन्दु शंखधवलम भगनेत्रभिदुज्ज्वलम.ह .
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 52 ॥
कम्बुग्रीवं कम्बुकंठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम.ह .
शार्दूलचर्मवसनम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 53 ॥
जगदुत्पत्ति हेतुं च जगत्प्रलयकारणम.ह .
पूर्णानन्द स्वरूपं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 54 ॥
सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवण कीर्तनम.ह .
ब्रह्मांडनायकं तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 55 ॥
मन्दारमूलनिलयं मन्दारकुसुमप्रियम.ह .
बृन्दारकप्रियतरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 56 ॥
महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम.ह .
सुलभासुलभं लभ्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 57 ॥
बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम.ह .
परेशं बीजनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 58 ॥
युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम.ह .
परेशं बीजनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 59 ॥
धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम.ह .
कर्पूरगौरं गौरीशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 60 ॥
सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम.ह .
योगदं योगिनां सिंहम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 61 ॥
उत्तमानुत्तमं तत्त्वम अंधकासुरसूदनम.ह .
भक्तकल्पद्रुमस्तोमम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 62 ॥
विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचन्दनचर्चितम.ह .
विष्णुब्रह्मादि वंद्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 63 ॥
कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम.ह .
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 64 ॥
लावण्यमधुराकारं करुणारसवारधिम.ह .
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 65 ॥
जटाधरं पावकाशं वृशेशं भूमिनायकम.ह .
कामदं सर्वदागम्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 66 ॥
शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम.ह .
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 67 ॥
वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रहकारणम.ह .
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 68 ॥
शशाङ्कधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशङ्करम.ह .
शुद्धं च शाश्वतं नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 69 ॥
शरणागत दीनार्ति परित्राणपरायणम.ह .
गम्भीरं च वषट्कारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 70 ॥
भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानस.ह .
करणं कारणं जिष्णुम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 71 ॥
क्शेत्रज्ञं क्शेत्रपालञ च परार्धैकप्रयोजनम.ह .
व्योमकेशं भीमवेषम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 72 ॥
भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम.ह .
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 73 ॥
दक्शं चामुण्डजनकं मोशदं मोशनायकम.ह .
हिरण्यदं हेमरूपम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 74 ॥
महाश्मशाननिलयं प्रच्च्हन्न स्फटिकप्रभम.ह .
वेदास्यं वेदरूप. च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 75 ॥
स्थिरं धर्मम उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम.ह .
जगन्निवासं प्रथममेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 76 ॥
रुद्राशमालाभरणं रुद्राशप्रियवत्सलम.ह .
रुद्राशभक्त संस्तोममेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 77 ॥
फणीन्द्र विलसत्कंठं भुजङभरणप्रियम.ह .
दशाध्वर विनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 78 ॥
नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम.ह .
मुनिवंद्यं मुनिश्रेष्ठमेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 79 ॥
मृगेन्द्रचर्मवसनं मुनीनामेकजीवनम.ह .
सर्वदेवादि पूज्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 80 ॥
निधनेशं धनाधीशम अपमृत्युविनाशनम.ह .
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 81 ॥
भक्तकल्याणदं व्यस्तं वेदवेदांतसंस्तुतम.ह .
कल्पकृत्कल्पनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 82 ॥
घोरपातकदावाग्निं जन्मकर्मविवर्जितम.ह .
कपालमालाभरणम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 83 ॥
मातङ्गचर्मवसनं विराड्रूपविदारकम.ह .
विष्णुक्रांतमनंतं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 84 ॥
यज्ञकर्मफलाध्यशं यज्ञविघ्नविनाशकम.ह .
यज्ञेशं यज्ञभोक्तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 85 ॥
कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्टनिग्रहकारकम.ह .
योगिमानसपूज्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 86 ॥
महोन्नतमहाकायं महोदरमहाभुजम.ह .
महावक्त्रं महावृद्धम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 87 ॥
सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीमपराक्रमम.ह .
महेश्वरं शिवतरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 88 ॥
समस्तजगदाधारं समस्तगुणसागरम.ह .
सत्यं सत्यगुणोपेतम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 89 ॥
माघकृष्णचतुर्दश्यां पूजार्धं च जगद्गुरोः .
दुर्लभं सर्वदेवानाम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 90 ॥
तत्रापिदुर्लभं मन्येत नभोमासेन्दुवासरे .
प्रदोषकालेपूजायाम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 91 ॥
तटाकंधननिशेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम.ह
कोटिकन्यामहादानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 92 ॥
दर्शनं बिल्ववृशस्य स्पर्शनं पापनाशनम.ह.
अघोरपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 93 ॥
तुलसीबिल्वनिर्गुण्डी जंबीरामलकं तथा .
पञ्चबिल्वमितिख्यातम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 94 ॥
अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नंदिकेश्वरम.ह .
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 95 ॥
सालंकृताशतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम.ह .
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 96 ॥
दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधसहस्रकम.ह .
सवत्सधेनुदानानि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 97 ॥
चतुर्वेदसहस्राणि भारतादिपुराणकम.ह .
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 98 ॥
सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम.ह .
तुलाभागं शतावर्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 99 ॥
अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योर्चयेल्लिङ्गमस्तके .
अधर्वोक्तम अधेभ्यस्तु एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 100 ॥
काशीशेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम.ह .
अघोरपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 101 ॥
अष्टोत्तरश्शतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यधाः .
त्रिसंध्यं मोशमाप्नोति एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 102 ॥
दन्तिकोटिसहस्राणां भूः हिरण्यसहस्रकम.ह .
सर्वक्रतुमयं पुण्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 103 ॥
पुत्रपौत्रादिकं भोगं भुक्त्वाचात्रयधेप्सितम.ह .
अंतेज शिवसायुज्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 104 ॥
विप्रकोटिसहस्राणां वित्तदानाश्चयत्फलम.ह .
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 105 ॥
त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वतवपादाम्बुयः पिबेत.ह .
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 106 ॥
अनेकदानफलदम अनन्तसुकृतादिकम.ह .
तीर्थयात्राखिलं पुण्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 107 ॥
त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव .
भवनं शाङ्करं नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 108 ॥
उमयासहितं देवं सवाहनगणं शिवम.ह .
भस्मानुलिप्तसर्वाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 109 ॥
सालग्रामसहस्राणि विप्राणां शतकोटिकम.ह .
यज्ञकोटिसहस्राणि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 110 ॥
अज्ञानेन कृतं पापं ज्ञानेनाभिकृतं च यत.ह .
तत्सर्वं नाशमायात एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 111 ॥
अमृतोद्भववृशस्य महादेवप्रियस्य च .
मुच्यंते कंटकाघातात कंटकेभ्यो हि मानवाः ॥ 112 ॥
एकैकबिल्वपत्रेण कोटियज्ञफलं भवेत.ह .
महादेवस्य पूजार्थम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 113 ॥
एककाले पठेन्नित्यं सर्वशत्रुनिवारणम.ह .
द्विकालेच पठेन्नित्यं मनोरथफलप्रदम.ह .
त्रिकालेच पठेन्नित्यम आयुर्वर्ध्यो धनप्रदम.ह .
अचिरात्कार्यसिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ 114 ॥
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः .
लश्मीप्राप्तिश्शिवावासः शिवेन सह मोदते ॥ 115 ॥
कोटिजन्म कृतं पापम अर्चनेन विनश्यति .
सप्तजन्मकृतं पापं श्रवणेन विनश्यति .
जन्मान्तरकृतं पापं पठनेन विनश्यति .
दिवारात्रकृतं पापं दर्शनेन विनश्यति .
शणेशणेकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति .
पुस्तकं धारयेद्देहि आरोग्यं भयनाशनम.ह ॥ 116 ॥
इति बिल्वाश्ह्टोत्तर शतनामावलिः समाप्ता ..
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